श्रेष्ठ संवाद
जीवन के रास्ते में बहुत से लोग मिलते हैं, जिनसे कई तरह के संवाद होते हैं। भाषा के विकास ने एक समाज को जोड़ने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। किसी क्षेत्र की भाषा से वहां के लोगों का जुड़ाव होना अच्छी तरह समझ आता है। वो इसलिए जुड़े हैं क्योंकि उनकी भाषा में आपसी भावों के समन्वय की झलक है। वो अपनी बात सुनाने और बोलने की पूरी धारणा रखते हैं।
जैसे अभी आपमें से कोई भी मुझे पढ़ रहा है, तो इसका सबसे बड़ा कारण है कि हिंदी भाषा से आप परिचित हैं। मैंने यहां पर सुनने और समझने की बात नहीं की। यह बहुत सूक्ष्म स्तर है। सुनना और समझना यह सबसे स्थिर आन्तरिक स्थिति होती है संवाद की…!
राह में चलते हुए किसी यात्री ने, दूसरे यात्री से पूछा..!
(उस दूसरे यात्री का परिचय केवल इतना ही है कि उसे शान्त रहना अधिक पसंद है.. सतही लोग अक्सर उसे जड़ हो चुका अस्तित्व समझ लेते हैं..)
पहला यात्री –
आप श्रेष्ठ संवादों को किस तरह देखते हैं..?
दूसरा यात्री –
मुस्कुराते हुए कहता है कि, आपका यह प्रश्न किसी यक्ष प्रश्न की तरह अनमोल है..
पहला यात्री –
तो कहिए, आपके अनुसार श्रेष्ठ संवाद क्या है..?
दूसरा यात्री –
सबके पास भिन्न – भिन्न विचार हैं, जिनके साथ उनकी स्वयं की प्रतिस्पर्धाएं भी चलती रहती हैं..!
प्रथम यात्री –
लेकिन , श्रेष्ठ संवाद होता क्या है?
दूसरा यात्री –
“श्रेष्ठ संवाद आंतरिक ऊर्जा के माध्यम से किया जाता है, जिसमें ऊर्जा के स्तर को केंद्र में रखकर सबसे उन्नत रहस्य खोले जाते हैं।”
प्रथम यात्री – (मुस्कुराता है और कहता है)
आपकी बात सुनकर लगता है कि अभी तक के अपने जीवन में, मैं किसी से संवाद भी नहीं कर पाया..!
दूसरा यात्री –
ऊपर – ऊपर से गुज़र जाने को , गहराई में उतरना तो नहीं कह सकते न..!
प्रथम यात्री –
हां! सच कहा आपने , सतह पर बैठे रहे और उसी सतह की गहरी माप का अंदाज़ा भी न लगा सके।
दूसरा यात्री –
हम जिस शरीर में यात्राओं की स्तुति करते हैं, उसी को नहीं भेद पाते आसानी से, तो संवाद की सार्थकता कैसे जानेंगे..?
बिना स्व संवाद के, अन्य कोई भी “श्रेष्ठ संवाद” किस तरह प्रकट हो सकेगा..?
प्रथम यात्री –
मैं समझा नहीं..!
दूसरा यात्री –
जो अपने भीतर स्थिर है, वही किसी अन्य संवाद की सही प्रक्रिया में उपस्थित हो सकता है।
बाकी तो सब ….ऊपर- ऊपर की धूल है…
शिविका 🌿