पंडित दीनदयाल उपाध्याय

Pandit Deendayal Upadhyaya

-पंडित दीनदयाल उपाध्याय कौन थे?

  • उनका भारतीय समाज, संस्कृति और राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा?

सुविधाओं में पलकर कोई भी सफलता पा सकता है; पर अभावों के बीच रहकर जीवन में कुछ कर पाना बहुत कठिन है। 25 सितम्बर, 1916 को जयपुर से अजमेर मार्ग पर स्थित ग्राम धनकिया में अपने नाना पण्डित चुन्नीलाल शुक्ल के घर जन्मे दीनदयाल उपाध्याय ऐसी ही विभूति थे।

दीनदयाल जी के पिता श्री भगवती प्रसाद ग्राम नगला चन्द्रभान, जिला मथुरा, उत्तर प्रदेश के निवासी थे। तीन वर्ष की अवस्था में ही उनके पिताजी का तथा आठ वर्ष की अवस्था में माताजी का देहान्त हो गया। अतः दीनदयाल का पालन रेलवे में कार्यरत उनके मामा ने किया। ये सदा प्रथम श्रेणी में ही उत्तीर्ण होते थे। कक्षा आठ में उन्होंने अलवर बोर्ड, मैट्रिक में अजमेर बोर्ड तथा इण्टर में पिलानी में सर्वाधिक अंक पाये थे।

14 वर्ष की आयु में इनके छोटे भाई शिवदयाल का देहान्त हो गया। 1939 में उन्होंने सनातन धर्म कॉलेज, कानपुर से प्रथम श्रेणी में बी.ए. पास किया। यहीं उनका सम्पर्क संघ के उत्तर प्रदेश के प्रचारक श्री भाऊराव देवरस से हुआ। इसके बाद वे संघ की ओर खिंचते चले गये। एम.ए. करने के लिए वे आगरा आये; पर घरेलू परिस्थितियों के कारण एम.ए. पूरा नहीं कर पाये। प्रयाग से इन्होंने एल.टी की परीक्षा भी उत्तीर्ण की। संघ के तृतीय वर्ष की बौद्धिक परीक्षा में उन्हें पूरे देश में प्रथम स्थान मिला था।

अपनी मामी के आग्रह पर उन्होंने प्रशासनिक सेवा की परीक्षा दी। उसमें भी वे प्रथम रहे; पर तब तक वे नौकरी और गृहस्थी के बन्धन से मुक्त रहकर संघ को सर्वस्व समर्पण करने का मन बना चुके थे। इससे इनका पालन-पोषण करने वाले मामा जी को बहुत कष्ट हुआ। इस पर दीनदयाल जी ने उन्हें एक पत्र लिखकर क्षमा माँगी। वह पत्र भी ऐतिहासिक महत्त्व का है। 1942 से उनका प्रचारक जीवन गोला गोकर्णनाथ (लखीमपुर, उ.प्र.) से प्रारम्भ हुआ। 1947 में वे उत्तर प्रदेश के सहप्रान्त प्रचारक बनाये गये।

1951 में डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने नेहरू जी की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीतियों के विरोध में केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल छोड़ दिया। वे राष्ट्रीय विचारों वाले एक नये राजनीतिक दल का गठन करना चाहते थे। उन्होंने संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्री गुरुजी से सम्पर्क किया। गुरुजी ने दीनदयाल जी को उनका सहयोग करने को कहा। इस प्रकार ‘भारतीय जनसंघ’ की स्थापना हुई। दीनदयाल जी प्रारम्भ में उसके संगठन मन्त्री और फिर महामन्त्री बनाये गये।

1953 के कश्मीर सत्याग्रह में डा. मुखर्जी की रहस्यपूर्ण परिस्थितियों में मृत्यु के बाद जनसंघ की पूरी जिम्मेदारी दीनदयाल जी पर आ गयी।

  • दीनदयाल उपाध्याय जी का एकात्मवाद क्या है? (integral humanism )

एकात्म मानववाद के नाम से उन्होंने नया आर्थिक एवं सामाजिक चिन्तन दिया, जो साम्यवाद और पूँजीवाद की विसंगतियों से ऊपर उठकर देश को सही दिशा दिखाने में सक्षम है। दीनदयाल उपाध्याय ने भारत की सनातन विचारधारा को ही ध्यान में रखते हुए,” एकात्म मानववाद” की विचारधारा दी। इन्हें जनसंघ की आर्थिक नीति का रचनाकार माना जाता है। दीनदयाल जी का विचार था कि आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य सामान्य मानव का सुख है।

अपनी संस्कृति के प्रति सम्मान रखना पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के राजनीतिक जीवन का पहला सूत्र रहा, उनके कथन अनुसार…

“ भारत में रहने वाला और इसके प्रति ममत्व की भावना रखने वाला मानव समूह एक जन हैं। उनकी जीवन प्रणाली, कला, साहित्य, दर्शन सब भारतीय संस्कृति है। इसलिए भारतीय राष्ट्रवाद का आधार यह संस्कृति है। इस संस्कृति में निष्ठा रहे तभी भारत एकात्म रहेगा। ”

“वसुधैव कुटुम्बकम्” भारतीय सभ्यता से प्रचलित है। इसी के अनुसार भारत में सभी धर्मों को समान अधिकार प्राप्त हैं। संस्कृति से किसी व्यक्ति, वर्ग, राष्ट्र आदि की वे बातें, जो उसके मन, रुचि, आचार, विचार, कला-कौशल और सभ्यता की सूचक होती हैं, पर विचार होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह जीवन जीने की शैली है।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी पत्रकार होने के साथ ही, एक कुशल संगठक, वक्ता, लेखक,और चिन्तक भी थे। लखनऊ में राष्ट्रधर्म प्रकाशन की स्थापना उन्होंने ही की थी। एकात्म मानववाद जिस धारा में वे भारतीय राजनीति को ले जाना चाहते थे वह धारा हिन्दुत्व की थी। उनकी कुछ प्रमुख पुस्तकें…

दो योजनाएँ

राजनीतिक डायरी

राष्ट्र चिन्तन : उनके भाषणों का संग्रह

भारतीय अर्थ नीति : विकास की एक दिशा

भारतीय अर्थनीति का अवमूल्यन

सम्राट चन्द्रगुप्त

जगद्गुरु शंकराचार्य

एकात्म मानववाद ( Integral Humanism)

राष्ट्र जीवन की दिशा

एक प्रेम कथा

ीनदयाल जी के नेतृत्व में जनसंघ नित नये क्षेत्रों में पैर जमाने लगा। 1967 में कालीकट अधिवेशन में वे सर्वसम्मति से अध्यक्ष बनायेे गये। चारों ओर जनसंघ और दीनदयाल जी के नाम की धूम मच गयी। 11 फरवरी, 1968 को वे लखनऊ से पटना जा रहे थे। रास्ते में किसी ने उनकी हत्या कर मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर लाश फेंक दी थी। इस प्रकार एक महान व्यक्तिव का अंत हुआ।

( मुगलसराय रेलवे स्टेशन,जिसका नाम लगभग 159 साल बाद बदलकर अगस्त 2018 में अब पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन कर दिया गया है)

  • पण्डित दीनदयाल उपाध्याय से जुड़ी अंत्योदय योजना क्या है?

2014 में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के सम्मान में उनके जन्मदिन को एक विशेष दिन के रूप में समर्पित किया। हर साल, पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती को चिह्नित करने और उनके जीवन और विरासत को याद करने के लिए 25 सितंबर को भारत में अंत्योदय दिवस के रूप में मनाया जाता है।

अंत्योदय शब्द का अर्थ क्या है ?
इसका अर्थ है कि गरीबों में से भी सबसे गरीब का उत्थान करना और इस दिन को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने और उसकी मदद करने के उद्देश्य से मनाया जाता है।गरीब युवाओं को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय रोजगार के अवसर खोजने में मदद करना है।

2014 में, अंत्योदय दिवस पर, ग्रामीण विकास मंत्रालय ने आजीविका कौशल नामक अपने मौजूदा कौशल विकास कार्यक्रम को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) के रूप में फिर से शुरू किया। बाद में नवंबर 2015 में इसका नाम बदलकर दीनदयाल अंत्योदय योजना- NRLM कर दिया गया।

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