अनुभूति चैतन्य की

अनुभूति चैतन्य की

अनुभूति चैतन्य की – जिन लोगों को यह अनुभूति हो चुकी है कि वो एक यात्रा पर हैं। वो अपने मार्ग में आए भ्रम को हटाते जा रहे हैं और आगे बढ़ रहे हैं..! वो नतमस्तक केवल सर्वश्रेष्ठ चेतनाओं के आगे होते हैं ; और पूरी प्रकृति ही उनका आश्रय है।

जब यह ज्ञात हो जाए, कि जहां वो हैं, वहां की हर चीज़ केवल सांकेतिक है। जिसका अस्तित्व भी अलग- अलग छोर से, अलग दिखाई पड़ता है। ऐसी स्थिति में सहजता का विस्तार स्वाभाविक है।

गीता में योगेश्वर कृष्ण सांख्य योग से लेकर, भक्ति, साकाम और निष्काम कर्म योग की बात करते हैं। स्पष्ट रूप से समझाते हैं। गीता गागर में सागर की तरह है। जब मुक्ति और अस्तित्व का भाव भी निकलना प्रारंभ कर दे, तो आनंद ही आनंद है।

चैतन्य होना क्या है..?

चैतन्य होने को संभावित भीड़ सांस लेना और चलने फिरने वाली गतिविधियों से जोड़कर देखती है। शरीर को घूमते फिरते देखना चैतन्य मान लिया जाता है। इस बात से मुख नहीं मोड़ा जा सकता कि शरीर एक माध्यम है।

मणिकर्णिका पर सबको स्थान नहीं मिलता, पर मैं यह मानती हूं कि, चेतना के चले जाने पर “मणिकर्णिका”, केवल शरीर को कैसे मोक्ष दे सकती है..! शरीर का मोक्ष होता भी है..?

दूर के क्षेत्रों से लोग शवों को वहां लेकर आते हैं, शव ही तो हैं। अगर चैतन्य हैं तो ,जीवन के रहते हुए मणिकर्णिका का सत्य लेकर आइए।

“माटी से बने यह भटकते चित्र, माटी के ही होंगे,
आज यहां, तो कल वहां, पर माटी के ही होंगे..”

शिविका 🌿

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