लोग अपने आप से उचटते जा रहे हैं और कह रहे हैं सब ठीक है। बहाव तीव्र है जीवन का, इसलिए चाहकर भी नहीं रोका जा सकता।
बहाव में बहने वाली बात का लोग बड़े चाव से सुविधाजनक प्रयोग करते हैं लेकिन आंतरिक दृष्टिकोण से विमुख बहाव भले इस धरती के अनंत छोरों से टकराता हो, लेकिन वह मृत बहाव है। इसमें आप सृजन नहीं, नष्ट करने वाले वेग से आगे बढ़ते हैं। बहाव में की जाने वाली अधिकांश चीज़ें एक कोरी धारणा लेकर बढ़ती रहती हैं।
” खाली जीवन जीने वालों को देखकर आप प्रेरणा मत लीजिए, जीवन इतना भी बड़ा नहीं है जितना आप सोचते हैं .. दुर्भाग्य से अमूल्य का मूल्य तय हो चुका है और मूल्यों पर बिकने वाली चीज़ें अमूल्य धरोहर जैसी मानी जाने लगी हैं..”
उम्र बढ़ने के साथ यदि जीवन कष्ट से भरता जा रहा है या कोई आनंद नहीं, इसका सीधा अर्थ है आपने जीवन को एकदम मामूली समझ कर बिताया है ;और उम्र के साथ ठहराव और मानसिक स्थिरता से उपजा आनंद मिल रहा है तो नि:संदेह जीवन को और समय को सबसे अमूल्य समझकर उसे समझा गया है..
“बहुत से बढ़ती उम्र के लोगों को अवसाद में देखती हूं तो प्रश्न उठता है कि ऐसा इन लोगों ने अपने जीवन को क्या अमूल्य भेंट दे दी है, जो अब अपनी अगली पीढ़ी को भी सीमित जीवन दिखाकर उनको अवसाद रूपी भेंट देना चाहते हैं..”
शिविका🌿