किसी जगह एक बच्चा बैठा था। भूख से तिलमिलाया हुआ, निवाले के स्वप्न में डूबा हुआ। उसे बताया गया था कि पेट की आग सबसे बड़ी आग होती है, बाकी की चीज़ें उसके बाद आती हैं। सबसे पहले पेट भरना होता है, बाकी के सारे काम उसके बाद शुरू होते हैं।
“भूख”, स्वाद नहीं जानती
“स्वाद”, भरे पेट की अवस्था है…
किसी ने अगर आहार त्यागना आरम्भ कर दिया है, तो संभव है उसे पेट से बड़ी वास्तविकता दिख गई होगी। सबको दिखने वाली वास्तविकताओं में अंतर भी तो है। यह अंतर ही जीवन को इधर से उधर खींचते रहते हैं।
“इस दुनिया में कई तरह की प्रतीक्षा और परीक्षा का एक खेल देखा जाता है। भूख को सोच नहीं मिलती, उसे अन्न चाहिए… भरे पेट को सोच मिल जाती है, भूख से आगे चले जाने की..! किसी की भूख से भरी आंखों के लिए, अन्न ही सबसे सुंदर स्वप्न है..।”
शिविका 🌿