रेत के टीले- एक व्यक्ति अपनी खोज में पूरी धरा नाप लेना चाहता है, बेचैनी से भागते हुए उसने यात्राएं की। अलग- अलग लोगों का जीवन दर्शन समझा। व्यक्ति देखे, उनकी संस्कृति, उनके जीवन के विभिन्न आयाम देखे। बड़े पर्वत, नदियां, उनके उद्गम स्थल, यहां तक कि पर्वत की चोटी पर पहुंच कर एक विशेष मानसिक क्षुधा को मूर्त रूप भी दिया, जैसा कि प्राय: सब करते हैं। पुस्तकें खंगाल ली, जीवन में उतारने का प्रयास भी किया। पर आंतरिक क्षुधा अब भी बेचैन ही रही।
रेत के टीले..!
यात्राओं ने स्मृतियां दी और कहानियां, जिन्हें लिखकर भ्रमित करना आसान है। रेत के टीले बनाकर , उनके अंदर जीवन तलाश नहीं किया जा सकता। वो स्वयं बताने आते हैं कि हम क्या थे..!
“यथार्थ परोसने वाले अपने भीतर की बेचैनी को , भीतर जाकर ठीक करते हैं। स्मृतियों और कहानियों से उनका दिल नहीं बहलता …”
शिविका 🌿