श्रृंगार

श्रृंगार

श्रृंगार

काजल की रेखा खींची आंखों के नीचे उसने, क्योंकि वो चाहती थी कि उसकी आंखों पर विशेष ध्यान दिया जाए । पर देखने वाले तो बिना काजल के भी उसकी आंखों में झांक लें , ऐसा समुंदर था उसकी आंखों में… चेहरें पर बनी धारियों ने मुझे बताया कि उसके पास उन धारियों को भरने के लिए कुछ भी नहीं होगा। अधरों पर फैली हुई लाली का रंग जैसे ,उसके अधरों के बाहर भी उड़ेल दिया गया हो।

उसकी आंखें दुनिया के सबसे चमकीले पत्थर जैसी आकर्षक हैं, फिर किसी ने बताया कि जो कोई इनमें देख ले वो क़ैद होकर भी आज़ाद हो जाए। उसके श्रृंगार में माप नहीं है, सारी रेखाओं के पार जाकर किया है उसने अपना सर्वश्रेष्ठ श्रृंगार। काजल से ही एक दूसरा घेरा बनाया है, जिससे कोई नज़र उसे चीर न जाए। उसकी आंखों की उदासी में भी एक रौनक है जो सब रौशन कर दे। वो सजी धजी बैठी है, दुनियां ने उसे सजना संवरना सिखा ही दिया। न सजती तो दुनियां की आंखों में चुभती, सजकर भी चुभने लगे शायद..!

मुझे डर है कि वो इस सजावट को यथार्थ न समझ ले, उसे बताना होगा कि यह सजावट अच्छी है पर असल सजावट तुम हो। तुम हो जिसने श्रृंगार को जन्म दिया, तुम स्वयं अस्तित्व का श्रृंगार हो यह याद रखना!

श्रृंगार का अस्तित्व तुमसे है
तुम सजावट मत बन जाना

एक अंतर की रेखा ज़रूर खींचना
श्रृंगार और बाहर की सजावट के बीच

“जागृत प्रतिमाएं अपना असल श्रृंगार जानती हैं, मृत प्रतिमाओं पर ही सजावट की रेखाओं का प्रभाव होता है..”

शिविका 🌿

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