ढोंगी

ढोंगी

ढोंगी

संस्कृति और सभ्यता की विलुप्ति का सबसे बड़ा कारण ढोँगी हैं। संस्कृति अपने आपको स्थिर रखने में सक्षम है, लेकिन सबकी स्व परिभाषाओं ने ही इसमें बहुत से भेद उपस्थित कर दिए। मर्म समझे बिना एक  भीड़ बना लेना यह दुःखद है।

आजकल मंदिरों पर जाओ तो पहले से ही तिलक लगाने के लिए बाहर लोग बैठे होते हैं, अगर इसे उन लोगों के रोजगार के अनुसार भी देखा जाए तो सोचिए, किस स्तर का परिवर्तन हो गया है? तिलक हमेशा से मंदिर के पुजारी या फिर किसी भी स्वच्छ आत्मा के द्वारा नि: स्वार्थ लगाया जाता था। अब यह फैशन वीडियो जैसा बन गया है, आतंरिक बहुत कम  रह गया है। अब कुछ लोग कहते हैं कि कम से कम वो उसे धारण तो कर रहे हैं, लेकिन मैं फिर कहूँगी धारण करने का स्वरुप आंतरिक होता है, बाहर से वो बस एक फैशन शो जैसा बन गया है। जो समाप्त होते भी देर नहीं लगती।

थोड़े दिन पहले ट्रेन की एक वीडियो वायरल हुई थी, जिसमें एक आदमी भगवा वस्त्र पहन कर किसी स्त्री को अजीब सी बातें कह रहा था, फिर उस स्त्री ने पूछा कि सुनाइए रामायण की कोई चौपाई या कुछ भी,  तो वो व्यक्ति अवाक रह गया और बातें घुमाने लगा।

भीड़ का हाल भेड़ जैसा है, जिधर शोर उधर भाग जाते हैं। योगेश्वर कृष्ण को नचनिया और रसिया की छवि के बाहर देख पायेंगे तो  मुक्त हो जाने की संभावना अधिक है। अगर सच में पालन कर रहे हैं तो ढोंग मत करिए, ढोंग वो जुगनू है जो मन को मोहता अवश्य है, लेकिन  यथार्थ दृढ़ता ही आरोहण का उद्घोष करती है।

“मैं कई बार सोचती हूं, झूठ की कोठरी बनने की ओर अग्रसर दुनिया में , बिना झूठ की कालिख लगे, निरंतर आगे बढ़ना कठिन ही होता जा रहा है..”

शिविका 🌿

Please follow and like us:
Pin Share