खाली हो जाओ..!

खाली हो जाओ..!

खाली हो जाओ..!

विस्मय से दुनिया में भटकते हुए , एक नन्हें बालक ने दुनिया को अपनी गहरी दृष्टि से देखा।बालक से गहरी दृष्टि किसकी हो सकती है..? जिसने जानना शुरु किया हो, उससे गहरी दृष्टि किसकी हो सकती है..?

एक बहुत सुंदर बात कही जाती है , जब जानने की इच्छा हो तो खाली हो जाओ। पूरी तरह से खाली हो जाओ। खाली हो जाना एक आरम्भ है नए स्पर्श का। जीवन हो या मन हो खाली हो चुका मन ही, अनुभव का जादू समा पाता है।

बच्चों के आगे सहजता से कहा जाता है, ऐसा मत करो , वैसा मत करो…वो सीख जायेंगे। सीख जाने का आधार उसके कच्चे मन से बनता है। कच्चा मन ही, बाद में उसके जीवन का पक्का आधार बन जाता है।

पक्के मन पर , कई प्रहारों के बाद भी बदलाव के छींटें पड़ने में समय लगता है। जब भूमि कड़ी हो जाती है, तो बेअसर हो जाती है। ऐसे ही जानने की यात्रा, खाली हो चुके मन के साथ अधिक प्रबल होती है। मिश्रित हो चुके विचारों में चुनाव आसान नहीं होता। इसके लिए सबसे पहले, “स्थिरता” तलाशनी होती है। वो नियम यहां भी काम करता है, कि जो असल तत्व है वो तली में रह जाएंगे और हल्के तत्व ऊपर आने लगेंगे। इससे जानने में सुविधा होगी, कि क्या रखना है और क्या नहीं..।

” एक खोजी की आंखों में समस्त ब्रह्माण्ड होता है, वो चाहता है कि हर छोर के भीतर जाकर देखे। कुछ बाकी न रह जाए। फिर एक समय आता है जब वो निरंतर अपने भीतर उतरता रहता है। वहीं से आरंभ होता है, अनंत के साथ संवाद। जो भीतर से आता हुआ बाहर भी उतना ही प्रभावशाली होता है..!”

शिविका🌿

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