देशभक्त तवायफ़ अजीजन बाई

Ajijan begum

किसी कोठे पर नाचने वाली महिला के मुंह से देश और समाज के हित की बातें आसानी से पचाई नहीं जा सकती।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन एक ऐसी ऐतिहासिक घटना है, जिसने हर उस बात को वास्तविकता में बदल दिया, जिसकी कल्पना आज का समाज तो बिलकुल नहीं कर सकता। अक्सर देखा जाता है कि तवायफों के बारे में जितनी निचले स्तर की बातें की जा सकती हैं , वो सब बड़े चाव से की जाती हैं। अजीजन बाई, एक ऐसी ही नर्तकी थीं , जो अपने नृत्य से लोगों का दिल बहलाती थीं। उन्होंने ना सिर्फ़ अपने नृत्य का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक शस्त्र की तरह प्रयोग किया, बल्कि अपनी साथी महिलाओं को भी स्वतंत्रता के इस रण में शामिल किया।

अजीजन बाई का जन्म 22 जनवरी ,1824 को मध्यप्रदेश के मालवा राज्य के राजगढ़ में हुआ था। इनका जन्म जागीरदार शमशेर सिंह के यहां हुआ। बचपन में इनका नाम अजंसा रखा गया। पास ही में हरादेवी के मंदिर परिसर में लगने वाले मेले से एक अंग्रेज सिपाही ने उन्हें अगवा कर लिया। बहुत समय तक इनको शारीरिक प्रताड़ना देने के बाद, अंग्रेज सिपाही ने उन्हें लाठी मोहाल के एक कोठे की मालकिन अम्मीजान के हाथों बेच दिया। यहां वे अजंसा से अजीजन बाई बन गई।

अपनी परिस्थितियों को देखते हुए इन्होंने, नृत्य और संगीत सीखा । धीरे धीरे आसपास के क्षेत्रों में इनका नाम बहुत प्रचलित हो गया। अजीजन बाई के यहां कई तरह के लोग आते थे, अंग्रेज़ अफसरों का मेला लगा रहता था। वो उस समय चल रही क्रांतिकारी गतिविधियों से बहुत प्रभावित थीं।

1 जून 1857 को क्रांतिकारियों द्वारा कानपुर में बैठक हुई। इसमें नाना साहब, तात्या टोपे के साथ सूबेदार टीका सिंह, शमसुद्दीन खां और अजीमुल्ला खां और अजीजन बाई ने भी हिस्सा लिया। सबने गंगाजल को साक्षी मानकर अंग्रेज़ी हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया।

विनायक दामोदर सावरकर ने अजीजन की तारीफ करते हुए लिखा है, ‘अजीजन एक नर्तकी थी परंतु सिपाहियों को उससे बेहद स्नेह था। अजीजन का प्यार साधारण बाजार में धन के लिए नहीं बिकता था। उनका प्यार पुरस्कार स्वरूप उस व्यक्ति को दिया जाता था जो देश से प्रेम करता था। अजीजन के सुंदर मुख की मुस्कुराहट भरी चितवन युद्धरत सिपाहियों को प्रेरणा से भर देती थी। उनके मुख पर भृकुटी का तनाव युद्ध से भागकर आए हुए कायर सिपाहियों को पुन: रणक्षेत्र की ओर भेज देता था।’

अजीजान बाई को ज्ञात ही नहीं था कि वो इतने बड़े स्तर पर स्वतंत्रता की लड़ाई में अपना योगदान देने वाली थीं। देशहित की भावना से भरी हुई अजीजन् जब नाना साहेब मिलीं तो उनके साथ मिलकर स्वतंत्रता की रणनीतियां बनाने लगीं। वो अंग्रेज़ अफसरों की जासूसी किया करती थीं। युद्ध कौशल सीखने लगीं। उन्होंने साथी वैश्याओं को लेकर मस्तानी टोली बना दी थी। जो पुरुषों की वेशभूषा में रहती थीं।

मस्तानी टोली की सभी महिला सदस्य घोड़ों पर सवार होकर हाथ में तलवार लेकर नौजवानों को आजादी के इस युद्ध में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित करती थीं। वे घायल सैनिकों का इलाज करतीं, उनके घावों की मरहम पट्टी करतीं। फल, मिष्ठान्न और भोजन बांटतीं और अपने अपनत्व से उनकी पीड़ा हरने की कोशिश करतीं।

एक बार महाराजपुर के युद्ध में वह तात्या टोपे के साथ गई थीं। 1857 के युद्ध की विफलता के बाद जब, सब प्रमुख सेनानी भूमिगत हो गये, तो अजीजन भी जंगल में जाकर छिप गई थीं।

भूमिगत अवस्था में एक बार अजीजन पुरुष वेश में कुएँ के पास छिपी थी, तभी छह अंग्रेज सैनिक उधर आये। अजीजन ने अपनी पिस्तौल से चार अंग्रेज़ अफसरों को धाराशाई कर दिया। शेष दो छिपकर अजीजन के पीछे आ गये और उसे पकड़ लिया। इस संघर्ष में अजीजन के हाथ से पिस्तौल गिर गयी और उसके बाल खुल गये। एक सैनिक ने उसे पहचान लिया। वह उसे मारना चाहता था; पर दूसरे ने उसे जनरल हैवलाक के सामने प्रस्तुत करने का निर्णय लिया।

अजीजन बाई को देखकर अंग्रेज अफसर मुग्ध हो उठा। उसने प्रस्ताव रखा कि यदि वह अपनी गलतियों को स्वीकार कर ले तो उसे माफ कर दिया जाएगा। अन्यथा कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी। अजीजन ने क्षमा मांगने से इनकार कर दिया।

अजीजन ने कहा कि माफी तो अंग्रेजों को मांगनी चाहिए, जिन्होंने भारतवासियों पर इतने जुल्म किए हैं। एक नर्तकी से ऐसा जवाब सुनकर अंग्रेज अफसर गुस्से से तिलमिला गए और उसे गोलियों से छलनी कर दिया गया।

विपरीत परिस्थितियों में भी देशहित को ऊपर रखने के लिए, भारतीय इतिहास अजीजन जैसी साहसी और दृढ़ स्त्रियों को सदैव याद रखेगा।

Please follow and like us:
Pin Share