असीम का सानिध्य

असीम का सानिध्य

मैं किसी की कल्पना का एक चित्र हूं
केवल एक चित्र!
जो आज दिख रहा है,
कल नहीं दिखेगा..।

हमेशा से एक बात बार बार महसूस होती आई है, कि कहीं कल्पना ही तो नहीं सब। जो शाश्वत है, केवल वो ही बना रहता है और बना हुआ है, जबसे अस्तित्व है। ज्ञात और अज्ञात के बीच की दिखाई देने वाली भ्रमित रेखा ही जीवन जैसी है, जिसमें सब बनाया जाता है और एक दिन वो ओझल हो जाता है।

जब एक छोटा बच्चा अजीब से सवाल करे कि क्या है यह सब जो दिख रहा है या जो करना पड़ता है , तो डांटकर भी उसके मन को शांत नहीं किया जा सकता। जब उसे लगता है कि आप अधिक जानते हैं, तो वो तब तक आपसे प्रश्न करेगा , जब तक कि आपके ज्ञान की सीमा पार न हो जाए।

जब उसके प्रश्नों के उत्तर मिलना बंद हो जाएंगे तो वो, स्वयं खोजी बन जाएगा।

“दर्शन पढ़ने से अधिक, जानने का विषय है, अनुभूति का विषय है। जब आप निरंतर आंतरिक खोज में होते हैं, तो वहां दर्शन जन्म लेता है। यह दार्शनिक कहला दिए जाने  वाली धारणा से भी मुक्त है। जब विश्व को कुछ अजीब से उन्मुक्त लोग दिखे, तो उन्हें दार्शनिक कह दिया गया। स्वयं दर्शन व्यक्त करने वाला भी जीवन भर नहीं जान पाता कि आख़िर आंतरिक रूप से आने वाले प्रवाह को सीमित कैसे रखा जाय। वो असीम के सानिध्य में रहता है..”

शिविका🌿

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