बालक मार्कंडेय

Markanday

भारतीय पौराणिक कथाओं में ऋषि मार्कंडेय का नाम विशिष्ट रूप से लिया जाता है। उनके पिता ऋषि मृकंदु और माता मरुदमती भगवान शिव के परम भक्त थे। ऋषि मार्कंडेय के जन्म की कथा भी बड़ी रोचक है…ऐसी मान्यता है कि ऋषि मृकंदु और माता मरुदमती की आराधना से प्रसन्न होकर ही भगवान शिव की कृपा से उन्हें तेजस्वी बालक मार्कंडेय प्राप्त हुए।

यह कथा भी प्रचलित है कि ऋषि मृकंदु से भगवान शिव ने जब पूछा कि “तुम अधिक आयु वाला साधारण पुत्र चाहते हो या केवल 16 वर्ष की आयु वाला बुद्धिमान और तेजस्वी पुत्र चाहते हो?”

तो ऋषि मृकंदु ने अधिक आयु वाले साधारण पुत्र के स्थान पर कम आयु वाले बुद्धिमान और तेजस्वी पुत्र को चुना। तब उन्हें मार्कंडेय जैसा तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ।

मार्कंडेय जब 16 वर्ष के होने वाले थे , तो उनके पिता ने उन्हें 16 वर्ष में मृत्यु हो जाने वाली बात बताई। मार्कंडेय बोले “मैं नहीं मरूंगा” । मैं भगवान शिव की आराधना करूंगा।” उनके सोलहवें जन्म दिवस पर जब यमराज उन्हें लेने आए , तब वो भगवान शिव की पूजा ही कर रहे थे, उन्होंने कहा, कि मैं भगवान शिव की पूजा कर रहा हूं, मैं आपके साथ नहीं आऊंगा और उन्होंने शिवलिंग को आलिंगन में ले लिया। जब क्रोधित होकर यम ने , यमपाश फेंका तो भगवान शिव प्रकट हो गए, और यमराज को जाने के लिए कहा।

भगवान शिव के प्रताप से बालक मार्कंडेय परम तेजस्वी , पूज्यनीय और युगों – युगों तक प्रभावी रहे हैं।

मारकण्डेय महादेव मंदिर

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जनपद मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर गंगा-गोमती के संगम पर चौबेपुर के कैथी ग्राम के उत्तरी सीमा पर ‘श्रीमारकण्डेय धाम’ स्थित है।
मान्यता है कि मारकण्डेय महादेव की पूजा करने से अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है, क्योंकि उन्हें स्वयं महादेव का वरदान प्राप्त है।

मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण प्राचीनतम पुराणों में से एक है। यह लोकप्रिय पुराण मार्कण्डेय ऋषि ने क्रौष्ठि को सुनाया था। इसमें ऋग्वेद की भांति अग्नि, इन्द्र, सूर्य आदि देवताओं पर विवेचन है और गृहस्थाश्रम, दिनचर्या, नित्यकर्म आदि की चर्चा है। भगवती की विस्तृत महिमा का परिचय देने वाले इस पुराण में दुर्गासप्तशती की कथा एवं माहात्म्य, हरिश्चन्द्र की कथा, मदालसा-चरित्र, अत्रि-अनसूया की कथा, दत्तात्रेय-चरित्र आदि अनेक सुन्दर कथाओं का विस्तृत वर्णन है। इसका प्रधान कारण है की इसके भीतर १३ अध्यायों में (८१अ०-९२अ०) देवी महात्म्य का प्रतिपादक बड़ा ही महनीय अंश है,जिसमे देवी के त्रिविध रूप- महाकाली,महालक्ष्मी तथा महासरस्वती के चरित्र का वर्णन बड़े ही विस्तार से किया गया है।

महत्वपूर्ण सन्दर्भ – विकिपीडिया

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