बंजर भूमि की उम्मीद

बंजर भूमि की उम्मीद

बंजर भूमि की उम्मीद

(वर्षा की बूंदों का , बंजर भूमि पर गिरना कभी भी साधारण बात नहीं हो सकती। बंजर भूमि और बूंदों ने जब एक दूसरे को स्पर्श दिया होगा, तो क्या कहा होगा..?)

वर्षा की बूंदें :

आसमान से गिरना, यह यात्रा उत्साह और उदासी , दोनों से भरी है।

हम क्षणभंगुर दूतों की तरह हैं, जो नमी लेकर चलते हैं। लेकिन नीचे देखो- बंजर भूमि फैली हुई है, सूखी और थकी हुई।

वर्षा की बूंदें : (धीरे से)

बंजर भूमि, तुम इतनी वीरान क्यों रहती हो?

हमें गले क्यों नहीं लगाती ठीक से..?

हमें अपनी दरारों में रिसने क्यों नहीं देती, और अपने सुप्त बीजों को जगा क्यों नहीं देती?

बंजर भूमि: (कर्कश स्वर में)

वर्षा की बूँदें, तुम भोली हो..!

तुम उम्मीद के साथ गिरती हो, लेकिन मैंने तुम्हारी तरह अनगिनत बूँदों को , मेरी सतह को छूने से पहले ही वाष्पित होते देखा है।

“मेरी मिट्टी क्षमाशील नहीं है, मेरी प्यास कभी नहीं बुझती।”

वर्षा की बूंदें :

हम जानते हैं, लेकिन हम डटे रहते हैं!

हम हवा में नाचते हैं, बादलों में इकट्ठा होते हैं, और बार-बार लौटते हैं। क्या तुम हमारा दृढ़ संकल्प महसूस नहीं कर सकती?

 बंजर भूमि: (कड़वे स्वर में)

दृढ़ संकल्प? जब मेरी जड़ें नमी के लिए तड़पती हैं, मेरे पत्थर कोमलता के लिए तड़पते हैं, तो इसका क्या लाभ?

तुम क्षणिक राहत देते हो, लेकिन यह कभी पर्याप्त नहीं होता।

वर्षा की बूंदें :

शायद हम तुम्हें धैर्य सिखाना चाहते हैं। जीवन में समय लगता है, मेरे दोस्त।

तुम्हारी बंजर भूमि में भी, कोमलता की संभावनाएँ हैं …

बंजर भूमि: (व्यंग्यपूर्वक)

कोमलता?

यह मुरझाई हुई झाड़ियों और इस फटी हुई धरती से कहो।

उन्होंने मौसमों का इंतज़ार किया है, और उन्हें क्या मिला है?

वर्षा की बूंदें : (सोचते हुए)

शायद , यह त्वरित परिवर्तन के बारे में नहीं है..!

शायद, यह शान्ति और धैर्य से काम करने के बारे में है – कठोरता का धीमा क्षरण, क्रमिक पोषण से ही हो सकता है।

हम उम्मीद की तरह हैं, जो तुम्हारी आत्मा में समा जाती हैं, लेकिन यह खाली नहीं जाती…

बंजर भूमि: (अनिच्छा से)

खाली नहीं जाती..?

ठीक है, शायद मैं इस बार सुनूंगी।

लेकिन ,चमत्कार की उम्मीद मत करो।  मैंने बहुत से तूफ़ानों को गुज़रते देखा है, जो मुझे अपरिवर्तित छोड़ गए हैं।

वर्षा की बूंदें: (आशावादी रूप से)

परिवर्तन नाटकीय नहीं होता…

कभी-कभी यह एक अंकुर होता है , जो मिट्टी की परत से बाहर निकलता है, एक नाज़ुक हरा अंकुर जो बाधाओं को चुनौती देता है।

हम गिरते रहेंगे, और निश्चित ही, तुम एक चमत्कार देखोगे…

बंजर भूमि: (नरम होते हुए)

शायद…!

शायद, मैं उस अंकुर को पाल लूँ, उसे चिलचिलाती धूप से भी बचाऊं…

(और इस तरह, वर्षा की बूँदें अपना प्रयास जारी रखती हैं, बंजर भूमि के दिल में आशा और कोमलता की कहानियाँ बुनती हैं। पानी और धरती के बीच संवाद, विशाल विस्तार में गूँजता है, आने वाले परिवर्तन का एक दृढ़ संकल्प लेकर 🌧️🌱)

शिविका 🌿

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