भारत का मन

भारत का मन

कोई कहे कि मेरे देश में क्या है..!
तो मैं कहूंगी, इसकी जड़ों तक उतरोगे तो जान पाओगे..
मैं कहूंगी,ठहरकर समझोगे तो मेरा “भारत” समझ आएगा..
मैं कहूंगी, मेरी भूमि विध्वंस देखने के बाद भी, अपनी असल अस्मिता के लिए लड़ती रही है..
मैं कहूंगी, सब झूठ हो सकता है, पर गहराई देखनी हो तो उतरो मेरे “भारत के मन” में..
मैं कहूंगी, एक ऐसी नक्काशी दुनिया के समक्ष, जिसने “जीवन की खोज” को आधार रखा..

पतन मन का होता है, मनुष्य का होता है, सभ्यता का भी होता है समय के स्पर्श के बाद, पर धरा का नहीं। कितने आए और चले गए,भूमि अब भी वहीं है, सबको आश्रय देती हुई।

इस चित्र में लोगों को गरीबी और जाने क्या- क्या दिखेगा, पर मैंने महलों के अंदर की घुटन भी देखी है।जीवन के खोखले उन्माद में डूबे लोगों को जाते भी देखा है।आपके पास अनंत भौतिकता होगी , पर सादगी आपको चीर कर निकल जाएगी। कलियुग के धर्म का पूरी दुनिया पालन करने में लगी हुई है..।

“अपनी पहुंच से दूर अंधकार के किनारे, रौशनी कैसे तलाश करेंगे..? सुकून, समझ, आनंद, पवित्रता, स्वच्छ मन, स्नेह, पारदर्शिता, यह तर्क के विषय नहीं , बल्कि साहस में सांस लेती अनुभूति की पराकाष्ठा है..!”

शिविका 🌿

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