भटकना आवश्यक है..!
भटकना आवश्यक है, आंख बंद करके किसी मृत विचार के पीछे भागने से बेहतर है “भटकना”..। यह भी सत्य है कि बाहरी भटकाव तो लगभग सबके ही भाग्य में है, किन्तु आंतरिक भटकाव आज भी भीड़ रहित है।
वहां कोई नहीं मिलेगा जिसे आप स्वयं से जोड़ सकें। वहां जाकर स्वयं को, स्वयं की रौशनी से जोड़ना होता है। बहुत लोग गए भी उस ओर कुछ ढूंढने के लिए, पर निर्जन देख वापिस लौट आते हैं। आंतरिक निर्जनता के वन में असंख्य जन्म और स्मृतियां पड़ी हैं। आपको जीवन भर वही तो रौशनी देती हैं या कहूं बाहर रहते हुए भी वही ध्वनि आपको स्वयं से जोड़कर रखती है। जब आप परतों के बीच फंस जाते हैं तो उसकी ध्वनि केवल एक गूंज बनकर रह जाती है, जैसे पहाड़ पर जाकर ज़ोर से बोलने पर ध्वनि का फिर से सुनाई देना। रिक्त स्थानों में ध्वनियों का आना – जाना स्वाभाविक है।
निर्जन का रहस्यमय एकांत, कभी भय, तो कभी निराशा से घेरता है। कभी साथ आकर संवाद में भागीदार बनता है, तो कभी जड़ हो चुकी संवेदनाओं की तरह इधर – उधर घूमता है।
“आंतरिक रिक्तता भी बहुत सी ध्वनियों का माया जाल हो सकता है, निर्जन आकर्षित करता है और निर्जन मन वाले व्यक्ति भी..।”
शिविका 🌿