बहँगी लचकत जाए…

chhath puja

काँच ही बाँस के बहँगिया, बहँगी लचकत जाए… बहँगी लचकत जाए… बात जे पुछेले बटोहिया बहँगी केकरा के जाए? बहँगी केकरा के जाए? तू त आन्हर हउवे रे बटोहिया, बहँगी छठी माई के जाए… बहँगी छठी माई के जाए… काँच ही बाँस के बहँगिया, बहँगी लचकत जाए… बहँगी लचकत जाए…

यह गीत सुनकर अपने आप ही छठ महापर्व का स्मरण होने लगता है। छठ महापर्व, एक ऐसा पर्व है, जो पूर्ण रूप से प्रकृति के साथ अपनी घनिष्ठता को प्रमाणित करता है। भारतवर्ष के अनेक पर्वों में, यह पर्व आज भी अपनी सनातन परंपरा को संभाले हुए उसी तरह चला आ रहा है… आइए इस लेख में प्रकृति और मानव के बीच मनाए जाने वाले इस विशुद्ध प्रेम की विशालता को समर्पित छठ पर्व के बारे में जानते हैं…

छठ पूजा क्या है?

छठ पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। सूर्य उपासना का प्रतीक यह महापर्व प्रारंभ में बिहार के क्षेत्र तक सीमित था ,लेकिन अब यह पूरे भारत के स्तर पर धूम धाम से मनाया जाता है। यह व्रत सूर्यास्त के समय सूर्य की अंतिम किरण को अर्घ्य देकर प्रारंभ होता है, और अगले दिन सूर्योदय के समय सूर्य की प्रारंभिक किरण को अर्घ्य देकर समाप्त होता है। चार दिन तक चलने वाला यह व्रत इस तरह से बांटा गया है…

1)नहाय खाय
2) खरना
3)संध्या अर्घ्य
4) प्रात: अर्घ्य

छठी मईया कौन है

ब्रह्मा वैवर्त पुराण में षष्ठी तिथि के दौरान, छठ मईया के व्रत का वर्णन मिलता है। इन्हें देवी कात्यायनी के रूप में भी जाना जाता है। नवरात्रि के छठवे दिन देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है। छठ मईया ब्रह्मा जी की मानस पुत्री मानी जाती हैं और सूर्य देव की बहन। यही कारण है कि प्रकृति के सभी तत्वों को ध्यान में रखकर किसी पवित्र नदी या पोखर पर इस व्रत को किया जाता है।

-छठ पूजा का इतिहास क्या है?

ऋगवेद काल से ही सूर्य की आराधना को विशेष स्थान दिया गया है। सूर्य को मूर्त रूप में देव मानकर उनकी उपासना की जाती रही है। सूर्य उपासना का वर्णन विष्णु पुराण, भगवत पुराण, ब्रह्मा वैवर्त पुराण में विस्तार से मिलता है।

उत्तर वैदिक काल के अन्तिम कालखण्ड में सूर्य के मानवीय रूप की कल्पना होने लगी, जिसने कि बाद में मूर्ति पूजा का रूप ले लिया। बहुत से स्थानों पर सूर्य मंदिर भी बनाये गये।

सूर्य को आरोग्य देवता के रूप में भी माना गया। सूर्य की किरणों में कई प्रकार के रोगों को नष्ट करने की क्षमता होती है।

कहा जाता है कि छठ पूजा वाराणसी में गढ़ावला वंश द्वारा शुरू हुई थी। छठ पूजा को लेकर कई तरह की कहानियां प्रचलन में हैं। आइए ऐसी ही कुछ कहानियों के बारे में संक्षेप में जानते हैं…

1) रामायण की मान्यता के अनुसार, लंका विजय के पश्चात भगवान श्री राम और माता सीता ने यह व्रत किया था।

2) महाभारत की मान्यता के अनुसार, सूर्यपुत्र कर्ण सूर्य देव की पूजा किया करते थे। वो प्रतिदिन नदी में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देते थे। यह माना जाता है कि सूर्य देव के प्रताप से ही वो महान योद्धा बने। देखा जाए तो आज भी सूर्य को अर्घ्य देकर ही यह पूजा की जाती है।

छठ पूजा का वैज्ञानिक महत्व क्या है?

षष्टी तिथि को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है, इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें (Ultra Violet Rays) पृथ्वी की सतह पर बहुत अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाती हैं । इसलिए जल में खड़े रहकर यह व्रत करने से इसके विपरीत प्रभाव से बचा जा सकता है।

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