किसी के लिए अनवरत,
दिन रात का खेल चल रहा है..
किसी के लिए यह महज भ्रम है,
तो किसी के लिए धरती घूम रही है..
कुछ सोचते हैं कि यह दुनिया,
रहस्यों से भरी अंधकार की दुनिया है..
जहां सच कोई नहीं जानता,
बस तर्क के माध्यम से बात साबित की जाती है..
मन के कोनों को सामने बैठाकर,
शब्दों से तान दिया जाता है
और उस पर गढ़ना शुरू कर देते हैं भाव..!
पूरी दुनिया..
अलग अलग विचारों को लेकर साथ चलती है ,
सब भिन्न हैं पर साथ चलते हैं..
अकेले रहने से अधिक बेहतर लगता है,
दूसरों के मन में उलझे रहना..
फिर जब जीवन बीत जाता है
झुर्रियों से भरी आंखों में
असली सुंदरता निखर आती है
पर समय अपना खेल दिखाता है..!
जीवन के बनते बिगड़ते खेल के बीच
मौत का मौन चीखता रहता है
अनवरत चलता रहता है सब
वो विचार
उनकी खोज
वो आनंद की लहरें
उदासी के युगों जैसे..मन के तहखाने
जिन्हें ज्ञान पिपासु खोज रहे हैं
कुछ मिलता है तो बांट देते हैं
बाकी क्या है..
दुनिया घूम रही है
लोग भी घूम रहे हैं
गुरुत्वाकर्षण का नियम है
सब घूम फिर कर इधर ही आ गिरता है..!
“हम भी औंधे मुंह पड़े हैं
अपने शब्दों की आड़ में
देखो न..!
सांझ ढल रही है
या फिर धरती घूम रही है..”
शिविका 🌿