कभी किसी ने सोचा है “ध्वनियों के संसार” के बारे में..? मुझे लगता है सोचा ही होगा..!
ध्वनियों का संसार , जिसके मध्य हमारी पूरी दुनिया रची बसी हुई है। मैं केवल धरती की ही बात नहीं कर रही, जहां बैठकर मैं बड़ी उत्सुकता से ध्वनियों को जानने में लगी हुई हूं। मैं बात कर रही हूं आकाश की, अन्तरिक्ष की विशालता में व्याप्त वो सारे खगोलीय पिंडों की, आकाशगंगाओं की , अदृश्य घूमती हुई उन सारी आकृतियों की , उन रिक्त स्थानों की भी, जिनके बारे में शब्द नहीं खोजे जा सके हैं अभी तक, क्योंकि उन रिक्त स्थानों तक जा पाना अभी संभव नहीं हो सका है।
कभी – कभी ज्ञात होता है कि इतनी सारी ध्वनियों के बीच रहते हुए भी, हम इनसे कितने दूर हैं। हम अपनी स्व ध्वनि से भी कोसों दूर हैं।
एक समय ऐसा होता है कि हम चिर परिचित ध्वनियों से भी एक दूरी बना लेते हैं, जैसे कुछ पहुंच ही नहीं पा रहा हो हम तक, तो फिर ब्रह्मांड में फैली हुई ध्वनियों के बीच हम कैसे सचेत हो सकते हैं..?
“मानव स्वभाव में परतों का विस्तृत जाल फैला हुआ है, जिसमें व्यक्तिगत रूप से भी देखा जाए तो असंख्य ध्वनियां अपने केंद्रों से विस्थापित इधर – उधर घूमती हुई प्रतीत होती हैं …”
शिविका🌿