दुनिया का अन्तिम इतिहासकार..!
अस्तित्व की सांझ में, जब सूर्य की सुनहरी किरणें धरती को स्पर्श देना बंद कर चुकी थीं। तब एक अकेला जीवित बचा वन , प्रकृति की धीमी पड़ती धड़कनों का प्रमाण बन कर खड़ा था। इसकी जीवंत छत्रछाया भी अब झुक गई थी, पत्तियाँ मुरझा गई थीं । पेड़ एक-दूसरे की ओर झुके हुए थे, जैसे अपनी अंतिम विदाई के शब्द कह रहे हों।
बचे हुए पक्षी भी , अब कलरव नहीं करते थे; उनकी ध्वनियां खो गई थीं। पैरों के नीचे पत्तों की सरसराहट बंद थी। यहाँ तक कि हवा भी, जो कभी शाखाओं के बीच एक चंचल नर्तकी हुआ करती थी, थक कर किसी और लोक में चली गई थी।
जानवर भी गायब हो गए थे। तेज़-तर्रार सुंदर हिरणों का कोई झुंड दिखाई नहीं दे रहा था। भेड़िये, जो कभी क्रूर और चालाक थे, अब लक्ष्यहीन होकर भटक रहे थे, उनकी आँखें खोखली और खाली थीं। नदियाँ, सूख गई थीं, उनके मार्ग पर धारियां थीं, जैसे चुपके से धरती के गालों से गुज़र गई हों अश्रुओं के निशान छोड़कर। जो थोड़ी बहुत बह रही थीं , उनकी धाराएँ अस्तित्व के अवशेषों को बहाकर ले जा रही थीं।
एक अकेला यात्री वहां से गुज़र रहा था। वह नदी के किनारे बैठकर जंगल के विनाश पर विचार कर रहा था। उसे आश्चर्य हो रहा था कि क्या वह अंतिम गवाह है..? दुनिया के लुप्त होने का अंतिम इतिहासकार.!
एक रात, जब यात्री वृक्ष के नीचे लेटा था, उसने एक हल्की सरसराहट सुनी। वह उठ बैठा, उसका दिल धड़क रहा था, और उसने अंधेरे में झाँका। वहाँ एक आकृति खड़ी थी – आकाशगंगाओं जैसी आँखों वाला एक भूतिया हिरण। वह उसकी ओर बढ़ रहा था….
“तुम क्यों रुके हो?” हिरण ने प्रश्न किया …
“मैं उत्तर चाहता हूँ,” यात्री ने उत्तर दिया।
“प्रकृति चुप क्यों हो गई है?
पक्षियों के गीत, पत्तों का नृत्य कहां खो गया है?”
हिरण की आँखों में आकाशगंगाएँ थीं – जैसे स्मृति का एक ब्रह्मांड…..”बहुत पहले,” उसने कहा…!
“मनुष्य पृथ्वी के साथ अपने रिश्ते को भूल गए। उन्होंने हवा को ज़हरीला कर दिया, जंगलों को नष्ट कर दिया, और नदियों को चुप करा दिया। संतुलन बिखर गया, और प्रकृति हमेशा के लिए चुप हो गई।”
“यात्री चुप था…उसे अपनी स्मृति में वो दृश्य दिखाई दे रहे थे, जिनमें प्रकृति को कुचलते हुए, पूरा विश्व अपने स्वार्थ का शोर मचा रहा था..”
शिविका🌿