दुनिया के साक्षात्कार का डर..!

दुनिया के साक्षात्कार का डर

दुनिया के साक्षात्कार का डर..!

मुझे डर है कि आधार से वंचित होकर बढ़ते हुए समाज को ढहने में एक पल नहीं लगेगा। आज तक बहुत से विषयों को इसलिए सहेज पाए , क्योंकि हमें एक आधार दिया गया था।

जैसे कहा जाता है कि घर उसे कहते हैं,  जिसे मिट्टी की पकड़ नसीब हुई है। जिसे मिट्टी ही नहीं मिली, केवल कांक्रीट की छत मिली है, उस पर बनने वाली दीवारों को एक हल्के से भूचाल से भी, गिराया जा सकता है।

मैं महसूस कर पा रही हूं , बढ़ते हुए खालीपन के काले साए को, जो निरंतर चेतना के द्वार पर पहरा दे रहा है। इस साए की परतें हमने इतनी मोटी कर ली हैं ,कि अंदर से आती हुई वो आत्म ध्वनि जिसमें हर बात का समाधान छिपा हुआ है, वो अनसुनी ही लौट रही है।

सारी दुनिया में घूमकर भी अकेलेपन को नहीं मिटाया जा सकता। सब होता रहा ,बस अपने आपको छोड़ दिया। यह कितना दुखद है, हमने सब पकड़ने की कोशिश में अपने आपको ही छोड़ दिया। आगे निकलने लगे, अपने आपको ही अनसुना करके। एक पल शान्ति से नहीं बैठ पाते, क्योंकि शान्ति से बैठेंगे तो आत्म साक्षात्कार की प्रक्रिया आरंभ हो जाएगी।

“दुनिया के साक्षात्कार का हिस्सा बनते – बनते, अपने भीतर देखना बंद कर देना ही, आगे जाकर सबसे बड़ी गलती साबित होती है। ऐसे जीवन का कोई अर्थ नहीं, जिसमें खोखलेपन को एकत्रित करते हुए, अपने आपको ही धकेल दिया जाता है…।”

शिविका🌿

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