दुनिया पागलखाना है..?
यह दुनिया, एक बहुत बड़ा पागलखाना है..! यह सच नहीं है… मैंने अक्सर पागलों को अकेले घूमते देखा है। अपने आप में डूबे हुए देखा है। दुनिया तो समझदार लोगों की होती है, जिसमें कई समानताएं पाई जाती हैं। एक दूसरे की नकल करते हुए आगे बढ़ते रहते हैं।समझदार लोग ही दुनिया चला सकते हैं, पागल तो दुनिया कुचलकर आगे बढ़ता रहता है। उसे क्या मतलब है दुनिया की किसी भी चीज़ से..?
पागलों के बारे में जितनी झूठी बातें फैलाई गई हैं, उनका कोई हिसाब नहीं। पागल हो जाना आसान नहीं। यह सबसे कठिन जीवन प्रक्रिया के बाद ही हो सकता है कि आपको पागल कह दिया जाए..!
सामाजिक लोगों को पागल कह दिए जाने से अलग ही चिढ़ है, उन्हें यह शब्द अपमान से भरा लगता है। जिसमें घृणा के अलावा कुछ भी नहीं। समाज में रहने के मोह ने, पागल शब्द को दुनिया से बाहर ही निकाल दिया है और पागलों को भी। फिर इस ज़रूरत से ज़्यादा समझदार दुनिया को, पागलों की दुनिया कह देना मूर्खता है।
किसी सिनेमा में देख आए कि दुनिया पागलखाना है, पर मैंने पागलों की बड़ी कमी देखी है इस दुनिया में। अपने आप से बातें कर सकने वाले सबसे बडे़ पागल कह दिए जाते हैं। जो आपस में बात कर सकें, वो समझदार होते हैं। जो अपने आप से बात करे, वो पागल है। यह दुनिया की भाषा है…
“जिसने सुध- बुध खो दी, वो पागल है और जिसने सुध बचाई हुई है, वो सब समझदार हैं…”
शिविका 🌿