द्वंद्व

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मार्ग के द्वंद्व और आनंद आपके सिवा किसी और के स्पर्श में नहीं आएंगे.. चाहे वो अश्रु धारा हो या आनंद की धारा । आन्तरिक पटल पर रची गई भाषा पूरी दुनिया के लिए एक अचंभा बन जाती है, पर उस गहराई में पनपे निर्जन में साथ बैठने वाला आपका असल “साथी” ही हो सकता है…

बाकी सबकी यात्राएँ अपनी गति से बढ़ती रहती हैं। कई बार श्रेष्ठ संवाद के दवाब के साथ, तो कई बार खोजती हुई दृष्टि के समान किसी परछाईं की तरह….

शिविका 🌿

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