मैंने अपने हिस्से का काम कर लिया है, ऐसा लगता है। कई बार यह लगता है। देखा जाए तो, सबने अपने -अपने कार्य बनाए हुए हैं और उन कार्यों की बड़ी – बड़ी गाथाएं उकेरी हैं।
गाथाएं
गाथाएं प्रोत्साहित करती हैं उसी ओर बढ़ते चलने को। वो बताती हैं कि कोई भी जो गाथा बनना चाहता है , वो उसी सीढ़ी पर चढ़ता जाए, जिससे वो गाथा बनी है। चुनने और बुनने की दौड़ ने अधमरी लाशों से धरती की गोद भर दी है। जहां पर सपनों के नाम पर कार्य गढ़े जाते हैं और यथार्थ को मरा हुआ मानकर उसे पहले ही बाहर कर दिया गया है।
“मस्तिष्क, चुने हुए या थोपे हुए कार्य का चरम जीने के बाद भी, खोखली आकृतियों में उलझा रहता है। उसके पास दिलासे की अभिव्यक्ति के लिए पूरा झुंड उपस्थित होता है। वो झुंड जो स्वयं भी गाथा बनने के लिए निरंतर सीढ़ी चढ़ रहा है। प्रशंसा के शिखर पर दुनिया भर में बेहोशी के नगाड़े बजाए जाते हैं..”।
शिविका 🌿