प्रकृति ने एक बच्चे को रंग पकड़ा दिए..
उस बच्चे ने पेड़ नीले, तो कुछ लाल बना दिए..!
आसमान गुलाबी बनाया
पंक्षियों के ना टूटने वाले घोंसले बनाए..!
उसने एक चीज़ नहीं बदली..
वो थी मिट्टी …
मिट्टी का स्वभाव बदलने का प्रयास भी एक बिखरी हुई सतही सोच है। उसके गुण बदले जा सकते हैं, कुछ विशेष तरह के प्रयोग करके , लेकिन रहेगी तो मिट्टी ही। देखा जाए तो, हर सूक्ष्म बात को समझकर, उसे अपनाना होता है, जैसे पानी के बारे में कहा जाता है कि वो जिस सांचे में ढाल दिया जाए , वैसा ही आकर ले लेता है।
मिट्टी की जीवन्त अवस्थाओं से, पूरी दुनिया पेट भरती है, जैसे पोषण का कोई चक्र चल रहा हो। भोजन का चक्र, उसके बाद उससे प्राप्त होने वाले पोषण का चक्र। प्रकृति पोषण करती है।
कई बार सोचती हूं, मिट्टी से बने शरीर में, चेतना का होना जीवन है। चेतना शून्य होने पर, वापिस मिट्टी में समा जाना भी जीवन है…
“मासूम मन स्वभावत:, बदलने से अधिक, स्वीकारने की प्रक्रिया में अग्रणी होता है..”
शिविका 🌿