कहा-सुना यथार्थ

कहा-सुना यथार्थ

कहानियों के आपसी द्वेष भी बड़े कमाल के हैं … रौशनी की कहानी में अंधेरा सबसे मुख्य भूमिका में , अंधेरे की कहानी में रौशनी… लेकिन सूक्ष्म स्तर पर रौशनी की कहानी में रौशनी है और अंधेरे की कहानी में अंधेरा…

“हमारे जीवन की कहानी की मुख्य भूमिका हमारे अतिरिक्त और क्या होगी..! शेष तो उस भूमिका से जुड़ने वाली स्मृतियों का हिस्सा हैं, लेकिन कहानी तो हमारी ही है…”

उतनी ही कहानियां सामने आ पाईं , जितनी बताई गईं.. उनमें से कुछ कहानियों ने मौन अपना लिया तो कुछ कहानियों ने किसी को चुन लिया , अपनी बात कहने के लिए..! कुछ कहानियां जगह बदलने में कामयाब रहीं और कुछ हमेशा के लिए अनकही हो गईं।

जब कोई कलाकृति बनती है, तो कलाकार अपना मन संजोता है उसमें। हर छोर से उसे सर्वश्रेष्ठ बनाने का प्रयास करता है। कला स्वयं अपने बारे में विश्व को चीख- चीखकर बताती है। फिर कलाकार प्रसिद्ध हो जाता है, फिर एक दिन कलाकार , जब सबसे बड़े रचयिता के पास चला जाता है तो उसकी कला की कहानी अलग – अलग ढंग से बताई जाती है ।

जिसने वो कलाकृति बनाई, वो स्वयं उसे पूरी तरह शब्द नहीं दे पाता , तो कोई और कैसे गढ़ता है उस कला पर अपना जीवन….?

जालों का बिखराव –

दुनिया की आंखें हमेशा से सच को देखने में कमज़ोर रहीं…
वो न देख सकी जो सामने था, वो देखने को आतुर रहीं , जो घुमा फिरा कर दिखाया गया।

“कोरा सच ” कौतूहल और बेचैनी का विषय बन जाता है।जिसमें समझ आने जैसा कुछ लगता नहीं,एक कोरे मन को ढांढस बंधाने के लिए दुनियां का जाल है पूरा का पूरा जाल। इसके अंदर सबकुछ ओझल नहीं होता।

एक मकड़ी धीरे- धीरे कैसे अपने एक सिरे से दूसरे सिरे की ओर जाती है , फिर उस पूरे रास्ते में कितने ही जालों को बुनती हुई स्वयं उसमें जाकर फंस जाती है…

फंसना हमेशा से आसान रहा है..!

निकलना मुश्किल होता है..!

शिविका 🌿

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