महानता क्या होती है..? भाग एक
अधेड़ व्यक्ति के प्रश्नों का , उस नवयुवक पर गहरा असर हुआ। उसने कई पुस्तकों को खंगाला, अपने आसपास के कई व्यक्तियों से मिला, जो कि बौद्धिक कहे जाते थे। कहीं से भी उसे , इस प्रश्न का सटीक उत्तर नहीं मिल पाया। वह उसी अधेड़ व्यक्ति की तलाश में हर दिन अपने घर से निकलता। उसे कहीं भी आराम नहीं था।
ऐसे ही अपनी खोज में, वो आगे की ओर बढ़ता रहा। मैंने खोज इसलिए कहा, क्योंकि वो अपने प्रश्न के उत्तर की तलाश में, रास्ते में आए और भी विषयों को जानता रहा। उसे लग रहा था, कि अब तक जिन विषयों के साथ उसने जीवन – मरण, मान – अपमान के कई किले बना लिए थे। वो तो खंडहर भी नहीं थे, क्योंकि खंडहर का भी अपना एक आधार होता है, जिस पर वो टिका होता है। इन विषयों का तो कोई आधार ही नहीं था…!
भटकते हुए किसी के आंगन में जा पहुंचा..और पानी मांगने लगा। भीतर से, लगभग उसी की उम्र का एक व्यक्ति बाहर आया। उसके हाथ में पानी था। उस व्यक्ति ने इसे पानी पिला दिया।अचानक ही इसके मुंह से निकला..
नव युवक –
आपने मुझ प्यासे को पानी पिलाया, आप महान हैं…!
(अचानक भीतर से वही अधेड़ व्यक्ति बाहर निकला)
अधेड़ व्यक्ति –
तो मिल गया तुम्हें उत्तर.. कि महानता किन उद्देश्यों पर टिकी हुई है।
नव युवक –
यही तो मैंने भी कहा था, आवश्यकता के अनुरूप महानता विस्थापित होती रहती है।
अधेड़ व्यक्ति –
हां..! लेकिन, उस दिन जो तुमने कहा था , वो तुम्हारे अनुभव से उत्पन्न नहीं था।
बल्कि, लोक – व्यवहार की भाषा थी!
नव युवक –
वो कैसे..?
अधेड़ व्यक्ति –
पूरा समाज , महानता की बातें करता है। लगभग सब जानते हैं भाषाओं की स्तुति और उससे जुड़ी बातें।
उस दिन तुम स्वयं को दानी कह रहे थे, और आज किसी ने तुम्हें पानी पिलाया। यह जल का दान भी तो, दान ही हुआ न..?
लेकिन सोचो, अगर किसी व्यक्ति को दानी का अर्थ जाने बिना ही , ‘दान’ आत्मनिष्ठ भाव से मिला है। तो वो असल दानी हुआ…
वाणी के अनियंत्रित प्रवाह से टकराकर, आधार को कोई अंतर नहीं पड़ता। संसार में सब इधर- उधर घूमता रहता है।
विषयों की आसक्ति चरम पर है। हम प्रसन्नता अनुभव करते हैं, अपने आपको और अपने प्रिय माने जाने वाले लोगों को, सांसारिक शब्दकोश के सबसे सुंदर शब्द भेंट करके..!
चलो, अच्छा है तुम्हारी खोज तो आरंभ हुई…
(नव युवक खाली ग्लास को पलट कर रख देता है..और सिर झुकाए मुस्कुराता जा रहा है)
शिविका🌿