मेरे बाबा स्वर्गीय श्री जनार्दन पाठक जी के नाम कुछ भावनात्मक संवादों से जुड़ी बातें..
मैं बहुत छोटी थी, लगभग इतनी छोटी कि दुनिया बहुत बड़ी दिखती थी (क्योंकि अब बहुत छोटी लगती है दुनिया)। जानने की उत्सुकता जैसी लगभग सभी बच्चों में होती है, वैसा ही मेरा भी हाल था। बाबा कठोर और सरल दोनों थे। बड़े – बड़े महायज्ञों में उनको जाते देखने के बाद हमेशा यह लगता कि बाबा कुछ तो हैं। उनका संस्कृत का उच्चारण भाषा की शुद्धता, सबकुछ ऐसा था जो आसानी से नहीं, एक साधना के बाद ही सीखा जा सकता था। वो संस्कृत, हिंदी, अंग्रेज़ी, ऊर्दू को बहुत सुंदर रूप से पढ़ना- लिखना जानते थे।
मैं उनसे कहानियां सुनती, वो हर बात के उतर में कहते कि बस खोजते रहना , सही समय पर उत्तर प्रकट होना आरम्भ हो जाएगा। मैं तब नौ वर्ष की थी, गांव में एक श्री राम कथा वाचक आए थे। मैं मां और दादी के साथ सुनने जाती थी, लेकिन मेरा ध्यान हमेशा कथा की सूक्ष्मता पर होता। मुझे प्रेम हो गया था श्री राम से। बाबा से घर आकर पूछा कि यह सब क्या है बाबा..?
मेरे बाबा
वो कहते कि तुम प्रश्न बहुत करती हो न, पहले स्वयं प्रयास किया करो ढूंढने का, जब उत्तर ना मिले तो मेरे पास आना। उन्हें श्रीमद्भागवत, गीता, श्रीराम कथा जाने क्या क्या कंठस्थ था और उससे जुड़ी सारी रोचक बातें भी..(मैं ध्यान दिलाना चाहूंगी कि केवल याद ही नहीं था, वो उसे समझते थे, धारण करते थे..)
मैं आजतक उनके जैसे किसी दूसरे से नहीं मिली। सैद्धांतिक जीवन केवल साहसी व्यक्ति ही जीते हैं, और वो साहसी थे।
कुछ समय बाद बड़े होते होते उनके बारे में बहुत कुछ ज्ञात हुआ, अपने जीवन के 33 वर्ष वो एक गांव की शिक्षा को दे चुके थे। मैं जानती हूं ऐसे बहुत से अदृश्य कर्मयोगी रहें हैं,जो कहानी बनकर भी कभी सामने नहीं आ पाते। उनके स्वजन ही उनको मिटा देना चाहते हैं, अमूल्य को समझना सबके बस का नहीं है।
वो सम्माननीय रहे जब तक जीवित रहे, मृत्यु के पश्चात केवल आप एक निर्जीव चित्र बनकर रह जाते हैं। किसी को मानने का अर्थ उसके श्रेष्ठ गुणों को धारण करना होता है। श्रेष्ठ जन जब दुनिया से विदा लेते हैं, वो अपने पीछे एक कभी न मिटने वाली कर्मों की रेखा छोड़ जाते हैं। हमारे पास बस उस रेखा को देखने की दृष्टि होनी चाहिए।
“एक नन्हें पौधे को जब सींचा जाता है, तो कहीं न कहीं उसे सींचने वाला यह जानता है कि आगे आने वाले समय में, इसके सामने कुछ भी आए यह उसे झेलने में समर्थ होगा। यह सच है, आज भी या कहूं कि कभी भी मैं जब किसी असहनीय पीड़ा से निकली, मुझे केवल अपने बाबा का स्मरण ही आया और एक बात कि आपकी परवरिश को मैं धारण करूंगी आजीवन..वो विपरीत परिस्थितियों में भी अडिग रहे अपने कर्म पर..”
शिविका 🌿