मिट्टी का आश्चर्य
कांक्रीट से निकलकर लोग, छोटे मिट्टी के घरों को देखना आश्चर्य समझते हैं। मिट्टी उनके लिए आश्चर्य है… हालांकि वह भी मिट्टी का एक जीवित नमूना हैं, यह और बड़ा आश्चर्य है..!
मिट्टी का आश्चर्य बहुत कम लोगों के हिस्से आया है, आधिकांश के हिस्से पथरीले मन आए हैं, जिन पर सृजन का बीज, जन्म ले ही नहीं सकता…!
सामर्थ्य की उचित परीक्षा में बैठे बिना, हम स्वयं को सर्वोच्च सिध्द कर देते हैं। फिर शुरू होता है अहम का खेल। जिसमें हम अपना कद और छोटा करते जाते हैं…कुछ समय बाद मिलते हैं , मिट्टी में मिल चुकी राख़ की तरह, पर फिर भी दम्भ नहीं जाता..!
उठो और ऊँचा उठो
कि झुका सको अपनी “नीयत”
और लिख सको अपनी नीयति
एक काली दीवार के अंदर,
जो बस तुम्हारे विचार के दर्पण पर ही सटीक है
इसके अलावा यह प्रकृति धिक्कारेगी तुम्हें
तुमने चीरा है इसे
हर पल अपनी भूख मिटाने के लिए,
तुम चीरते हो ह्रदय भी
अपनी दौड़ तक भागने के लिए..
“तुम नश्वर हो
ईश्वर नहीं….
कुछ नहीं हो तुम…!”
शिविका 🌿