लोग अपने आप से उचटते जा रहे हैं और कह रहे हैं सब ठीक है। बहाव तीव्र है जीवन का, इसलिए चाहकर भी नहीं रोका जा सकता।
दौड़ते हुए व्यक्ति को मार्ग का स्मरण नहीं रहता, वो बस भागता रहता है। कई बार दिशा तय करके और कई बार किसी भी दिशा में। ऐसी स्थिति में कल्पना भी नहीं की जा सकती कि, उसने कुछ जाना होगा…!
बहाव में बहने वाली बात का लोग बड़े चाव से सुविधाजनक प्रयोग करते हैं लेकिन आंतरिक दृष्टिकोण से विमुख बहाव भले इस धरती के अनंत छोरों से टकराता हो, लेकिन वह मृत बहाव है। इसमें आप सृजन नहीं, नष्ट करने वाले वेग से आगे बढ़ते हैं। बहाव में की जाने वाली अधिकांश चीज़ें एक कोरी धारणा लेकर बढ़ती रहती हैं।
” खाली जीवन जीने वालों को देखकर आप प्रेरणा मत लीजिए, जीवन इतना भी बड़ा नहीं है जितना आप सोचते हैं .. दुर्भाग्य से अमूल्य का मूल्य तय हो चुका है और मूल्यों पर बिकने वाली चीज़ें अमूल्य धरोहर जैसी मानी जाने लगी हैं..”
शिविका🌿