यह नासदीय सूक्त का प्रथम मंत्र है…
नासदासीन्नो सदासात्तदानीं नासीद्रजो नोव्योमा परोयत्।
किमावरीवः कुहकस्य शर्मन्नंभः किमासीद् गहनंगभीरम् ॥(१)
सृष्टि से पहले सत नहीं था
असत भी नहीं
अंतरिक्ष भी नहीं;आकाश भी नहीं था
छिपा था क्या, कहाँ
किसने ढका था
उस पल तो
अगम अतल जल भी कहां था…
ऋग्वेद को विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ होने का गौरव प्राप्त है। 5000 वर्ष पूर्व लिखे गए ऋग्वेद के नासदीय सूक्त में सृष्टि की रचना से पहले का जो वर्णन है वो आज भी प्रासंगिक है। इसके रचयिता ऋषि प्रजापति परमेष्ठी माने जाते हैं। इस सूक्त के अनुसार सृष्टि की शुरूआत से पहले किसी तरह का कोई तत्व नहीं था, कोई अणु, परमाणु या पार्टिकल कुछ भी नहीं। आकाश, हवा, दिन, रात वगैरह भी नहीं थे। केवल अंधकार था, गहन अंधकार और शून्य, निर्वात, खालीपन; और तब, ब्रह्मतत्व या जिसे ईश्वर भी कहा जा सकता है, के मन में सृष्टि रचने की इच्छा उत्पन्न हुई और ‘कुछ नहीं’ से ‘कुछ’ का निर्माण होने की नींव पड़ी….
शिविका 🌿