प्रकृति से जुड़े कर्मकांड क्या हैं ..?
यह प्रश्न कितनी बार उपस्थित होता है कि कर्मकांड क्या हैं..? क्या यह केवल अंधविश्वास हैं?
भारतीय दर्शन इसके विषय में कहता है कि, अगर कर्मकांड समझ के साथ किए जाते हैं, तो वे हमें ब्रह्मांडीय व्यवस्था से जोड़ते हैं। वो उन ध्वनियों से जोड़ते हैं, जिनकी गूंज साधारण जीवनचर्या से अनुभव नहीं की जा सकती।
लेकिन वहीं पर , अंध कर्मकांड सहायता करने से अधिक, हानि पहुंचाते हैं। हमें केवल घी और आग से नहीं, बल्कि भूमि का पोषण करके, पानी का संरक्षण करके और सभी प्राणियों का सम्मान करके यज्ञ करना चाहिए।
ब्रह्मांड उन लोगों का समर्थन करता है, जो संतुलन के लिए प्रयास करते रहते हैं। साहस और प्रेम के साथ आगे बढ़ते हुए कार्य, अनंत काल तक गूंजते रहते हैं। पृथ्वी हमसे अलग नहीं है; यह हमारी आत्मा है। इसके सारे तत्वों का जोड़ ही हम हैं।
वेदांत हमें सिखाता है कि बाहरी दुनिया, हमारी आंतरिक स्थिति को दर्शाती है। पृथ्वी को समझने के लिए, हमें सबसे पहले अपने चित्त को शुद्ध करना होगा।
नदियाँ कचरे से भर गई हैं, और जंगल चुपचाप रो रहे हैं। क्या हमारी आध्यात्मिक साधनाएँ अकेले इस टूटी हुई दुनिया को ठीक कर सकती हैं?
” यथार्थ धर्म ,अनुष्ठानों से परे है। यह ब्रह्मांडीय व्यवस्था है – वह धागा जो अस्तित्व के ताने-बाने को एक साथ बुनता है। इसमें कर्तव्य, धार्मिकता और करुणा भी शामिल हैं। धर्म स्थिर नहीं है; यह समय, स्थान और परिस्थिति के अनुसार ढल जाता है। प्रत्येक चेतना का एक अनूठा मार्ग है। हमारा धर्म हमारी भूमिकाओं से उत्पन्न होता है – चाहे वह शिक्षक, योद्धा, व्यापारी या मजदूर के रूप में हो। फिर भी, एक सार्वभौमिक धर्म है – जो हम सभी को बांधता है और वह है सत्य का अन्वेषण…हमें यह ज्ञात होना चाहिए , कि प्रकृति प्रदत्त यह सारी व्यवस्थाएं कुछ समय के लिए ही हमारे पास हैं ; और यह भी कि यह हमारे स्वामित्व के लिए नहीं हैं..।”
शिविका 🌿