प्राकृतिक निषेध

प्राकृतिक निषेध

जितने भी लोग तीर्थयात्राओं पर जाते हैं, उन्हें यात्रा पर निकलने से पहले स्व मंथन से जानना चाहिए कि इस यात्रा का अर्थ क्या है..? वो क्या चाहते हैं इस यात्रा से..?

अधिक आरामदायक यात्राओं के चक्कर में तीर्थ नष्ट होने के कोने पर खड़े हैं…जब तीर्थ ही नहीं बचेंगे तो क्या आप अपनी कलियुगी बुद्धि से कहीं और नए तीर्थ स्थांतरित कर देंगे..?

-लद्दाख में सोनमवांगचुक जी वहां बढ़ते जा रहे पर्यटन और उससे उपजे अत्याधिक कूड़े और मौसम के बदलने को लेकर चिंतित हैं और सबसे बड़ी समस्या यह कि #संवेदनशील क्षेत्र होने के कारण बहुत से निषेध होने आवश्यक हैं..

हमें कुछ प्राकृतिक निषेध जानने चाहिए-

संवेदनशील स्थानों पर स्थित कोई भी तीर्थ अपने विशेष महत्व के साथ और एक प्रमुख संकल्पना के साथ स्थापित किया गया था। दिखावे के चक्कर में वह संकल्पना नष्ट होती प्रतीत हो रही है। प्रश्न यह भी है कि ऋषिकेश जैसे स्थान बहुत शीघ्रता से prostitution और नशे का अड्डा बनते जा रहे हैं। गंगा नदी के किनारे शराब की बोतलों के टुकड़े आसानी से मिल जाते हैं। हुड़दंगियों के लिए देश के भीतर ही पर्याप्त स्थान बने हुए हैं, पता नहीं इन्हें हर जगह शोर मचा कर क्या मिलता है..?

“यात्रा का अर्थ समझिए, केवल मानसिक क्षुधा को पूर्ण करने के लिए ऐसे स्थानों की यात्राएं मत करिए ,आप अनजाने में ही प्रकृति में उपजे बड़े संकट को बढ़ावा दे रहे हैं। अत्याधिक निर्माण और अत्याधिक संख्या में लोगों के इन स्थानों पर पहुंचने की मारामारी के कारण इन जगहों का सन्तुलन आने वाले समय में और अधिक बिगड़ने की स्थिति में पहुंच गया है। जोशीमठ में जो हुआ, उससे सबक नहीं लिया, आए दिन पहाड़ों पर जो हो रहा है, उससे सबक नहीं लिया। यात्राओं में भी आप सब सुविधा खोजते हैं, कब तक सुविधाएं ही खोजते रहेंगे। सीखेंगे कब..?”

शिविका 🌿

Please follow and like us:
Pin Share