पुष्प की अभिलाषा

पुष्प की अभिलाषा

पुष्प की अभिलाषा

बड़ी सुन्दर कविता है, माखन लाल चतुर्वेदी जी की ‘पुष्प की अभिलाषा ‘… जिसमें वह फूलों की ओर से संदेश देकर कहते हैं कि, पुष्प की इच्छा है कि उसे श्रृंगार के लिए प्रयोग में ना लाया जाए, सम्राटों के शवों पर चढ़ाने के लिए भी नहीं , न ही देवताओं के लिए तोड़ा जाए और न ही अपने किसी प्रिय को भेंट करने के लिए , पुष्प चाहता है कि उसे उन मार्गों पर फेंक दिया जाए, जिन रास्तों से अपनी मातृभूमि के लिए प्राण देने वीर आगे बढ़ते रहते हैं।

कवियों की काव्य अभिव्यक्ति की सूची बहुत लंबी होती है, भाषा का ज्ञान आ जाने के बाद, सब अपनी मनपसंद अभिव्यक्ति का चुनाव करते हैं। कवियों के बारे में वैसे भी यह कहा जाता है कि, जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि। इसका सीधा तात्पर्य है, कि कल्पनाओं का कोई छोर नहीं है। कवियों ने तो मौन पर भी लिख दिया है..!

मुझे यह व्यंग्य की तरह लगता है, जैसे वो पंक्ति कि, सन्नाटे की अपनी भाषा होती है…सन्नाटे की भाषा भी बना दी गई है। इससे यह तो सिद्ध होता है कि कवियों की दृष्टि में सब समा सकता है। वो एक पत्थर पर भी लिख सकते हैं और एक पहाड़ पर भी…।

“आंतरिक दृष्टि की विशालता से उपजी कविताओं ने भाषा को भी सजा दिया है, अपने आप से आगे जाती कविताएं सार्वभौमिक उद्देश्य लिए आगे बढ़ती हैं, जिनमें कई तरह के संबोधन होते हैं और उनका विस्तार भी…।”

शिविका🌿

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