“तपस्या” का पर्याय पूरा जीवन भी हो सकता है, यह राम की जीवन यात्रा में भलीभाँति दिखाई देता है। वाल्मिकी जब “मर्यादा पुरुषोत्तम” की बात करते हैं, तो वह सहज ही एक ऐसे दृढ़ निश्चय से भरे हुए चरित्र की ओर इंगित करते हैं, जिसमें चट्टान के समान कोई व्यक्ति अडिग खड़ा हुआ है। परिस्थितियों के सामने “सहजता”, यह राम के सम्पूर्ण व्यक्तिव का सबसे सुंदर उद्घोष है।
“करुणा” के आधार, “प्रेम” की जीवन्त भूमि, “स्नेह” की अभिव्यक्ति, “दृढ़ता” का असीम समावेश, यह सब के सब राम ही तो हैं। शब्दों की बदलती करवटों से , मन की थरथराती भूमि के कम्पन को नहीं रोका जा सकता। मानव इतिहास छल का साक्षी रहा है। ऐसा ” छल” जिसमें व्यक्ति स्वयं को छले जा रहा है।
जब राम की तपस्या की बात आती है, तो कोई भी उस चुनाव के बारे में बात नहीं करता, जिसे राम ने हर्ष से चुना। राम ने सब चुना सहजता से, जैसे हर बात किसी जीवन उत्सव की तरह आई हो। लोगों ने देखा, “राक्षसों का वध”, “अकल्पनीय योद्धा सा साहस”..! दृढ़ता से भरे मन में करुणा का सागर था…
कोई भी असीम चरित्र पूरी दुनिया के लिए, जानने का एक रोचक विषय बन जाता है, पर उस चरित्र को सामने बिठाकर एक छोटा सा संवाद करने का साहस भी नहीं होगा..!
साहस इसलिए कहा , क्योंकि जो अपने जीवन में , चेतना के सर्वोच्च शिखरों के साथ संवाद में रहा , उसके मन के साथ बैठने के लिए भी, उसी प्रक्रिया को अपनाना होगा जो उस श्रेष्ठ चरित्र के जीवन की साथी रहीं…
“तपस्या ” को इतने साधारण रूप से प्रयोग किया जाता है, जैसे बातों में निकली हुई कोई बात हो… तप का संबंध खोखले जीवन की वास्तविकताओं में कोई खोज भी कैसे लेता है…”राम की तपस्या ” राम को धारण करने में है, और सही रुप से धारण करना तब संभव हो पाता है, जब संवाद हो..संवाद अपने ईष्ट के साथ भी…
केवल उत्तर न हों, प्रश्न भी हों। बिना मन में प्रश्न जागे, दुनिया से अनचाही भेंट की तरह मिलने वाले विचार हवा में लटकी हुई जड़ों से अधिक कुछ भी नहीं हैं… जिन्हें मन के आधार की मिट्टी नहीं मिली, वो उखड़ ही जायेंगे, आज नहीं तो कल..!
शिविका🌿