श्मशान का दीया
जलता-बुझता सा
अपनी लौ बचाए हुए
हवाओं के बीच
डटा हुआ है कबसे..!
हालांकि इस चौखट पर
सब बुझे दीये ही आते हैं
पर वो दीया अस्तित्व की
लड़ाई लड़ता है
कुछ अलग ही तरह से
भयभीत हुए बिना
बस हवाओं से टकराता है
अपने कौशल को दर्शाने में लगा है..!
उन मरी हुई आत्माओं के लिए
जो निरंतर उसमें तेल डालती हैं
एक गंभीर डर के कारण ,
कि उन्हें वो चौखट ना देखनी पड़े
या जीवन ही न रूठ जाए उनसे
पर वो तो स्वयं से ही रूठे हुए हैं..!
“वो दीया डगमगा रहा है
फिर एक बुझा दीया आता है
उसे आदर-सत्कार से जलाते हैं
और फिर इस डगमगाते दीये में
तेल डाल दिया जाता है और फिर
ये दीया जलता रहता है रात-दिन
बुझे दीयों के आने की प्रतीक्षा में…।”
शिविका🌿