शिव की भेंट

शिव की भेंट

शिव की भेंट- चिदानंदरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्..।

कितना सहज है, उन भावों के विस्तार के बारे में लिखना, जो अंदर जाकर एक गूंज की तरह बहता ही रहता है। आत्म ध्वनि में हर बात की प्रखरता नहीं होती। केवल कुछ ही विशेष तत्व होते हैं , जिन्हें किसी भी छोर से देखा जाए तब भी, उनकी उपस्थिति वैसी की वैसी होती है।

शिव को जानने की प्रक्रिया कुछ थी ही नहीं जैसे कभी।  शब्दों के अभाव ने हमेशा यह बताया कि सर्वश्रेष्ठ को व्यक्त करना संभव ही नहीं , किसी प्रकार संभव नहीं।

मन की चंचलता जब स्थिरता में डूबने लगी, तब निर्जन में घूमते हुए किसी योगी से टकरा गई। वो मैं ही थी जैसे, हम सबके भीतर छिपे योगी को किसी भी बात से क्या लेना देना.?

“एक भोगी के लिए सारा संसार ही भोग है और एक योगी के लिए सारा संसार योग है…संसार ही क्यों कहां जाए, अस्तित्व के चक्षुओं में समाता सब कुछ और वो भी जो अस्तित्व का भी अस्तित्व है..।”

गहराई के धरातल से रिसते ज्ञान को जकड़ कर रखा ही नहीं जा सकता, पहले वो अंदर से झकझोर देता है और फिर जीवन के साथ ऐसे चलता है जैसे दोनों एक ही हो गए हैं।

असल भाग्योदय तब होता है, जब ज्ञान का उदय हो। ज्ञान के उदय के साथ समरसता आना स्वाभाविक है। मेरे जीवन में ज्ञान का उदय, शिव की दी हुई सबसे बड़ी भेंट रही। सबकुछ शिवमय हो जाना, अर्थात निरंतर एक ऐसी दिशा की ओर बढ़ते जाना , जहां पर सब शिव ही है।

चिदानंदरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् –

आचार्य शन्कराचार्य द्वारा रचित ” निर्वाण-षटकम्” आन्तरिक गूढ़ता का चरम है, जिसे उन्होंने तब सामने रखा जब उनकी अपने गुरू से प्रथम भेंट हुई और वह छोटा बालक शंकर जिस तरह से अपने गुरू को अपना परिचय देता है, यह अपने आप में विलक्षण है।

आंतरिक स्थिति का ज्ञान , स्व अवलोकन के बिना संभव ही नहीं, शिव को जानने के लिए अंदर न उतरे तो कैसे जान पाएंगे उन्हें। शिव महाश्मशान के मुक्ति केंद्र और सृजन के सूक्ष्म सूत्रधार हैं।

“इस ब्रह्मांड में विचरण करने वाली अनेकों ज्ञान गंगाओं को धारण करने वाले शिव , ज्ञान के प्रवाह का अंतहीन केंद्र हैं…”

शिविका🌿

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