अपने इसी जन्म की स्मृतियों को स्मरण करते हुए एक धुंधलापन दिखता है, चाहकर भी हम पूरी तरह से अपने विगत वर्षों के पन्नों को उसी रुप में नहीं देख सकते।
ऐसा है, जैसे स्मृतियों के अवशेष पड़े हों, कुछ मृत हो गए और कुछ विलुप्ति के मार्ग पर हैं। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि व्यक्ति को अपने जीवन से अधिक , दूसरे व्यक्तियों के जीवन की स्मृति, उनकी कहानियां क्रमानुसार स्मरण में रहती हैं।
बहुत ही कम व्यक्ति ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी स्मृति और उससे मिले अनुभव का स्पर्श अपनी चेतना पर संचित किया।
मेरा तात्पर्य
इसी जन्म की यात्रा की स्मृति के केवल अवशेष बचे हैं तो पिछले अनेक जन्मों की यात्राओं का स्मरण न रह पाना कोई बहुत आश्चर्यजनक विषय नहीं है..”
शिविका 🌿