सूक्ष्म से विराट

सूक्ष्म से विराट

प्रकृति की भाषा के केंद्र में सब सम्मिलित है। वो सबको उत्तर भी समान रुप से दे रही है। हर पल कुछ कह रही होती है, जैसे प्रत्येक क्षण करोड़ों जीवों का जन्म होता है। जिनके बारे में अनभिज्ञ होना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। जीवन की दौड़ में थके जीव का प्रकृति की गोद में जाकर बिखर जाना ,अक्सर यह देखा जाता है। कितनी हैरानी है, प्रकृति में रचा बसा जीव, प्रकृति खोजने यहां से वहां भटकता है।

सर्वश्रेष्ठ भोगने के लिए, सर्वश्रेष्ठ जानना कितना आवश्यक है, इसका ज्ञान होना भी आसान नहीं। सीढ़ियों से उतरते विचार, और सीढ़ियों से चढ़ते विचार, कब क्या रुप ले लें कुछ भी नहीं कहा जा सकता। चेतना की गूंज प्रकृति के सानिध्य में और प्रखर होकर आती है। इसलिए शान्त हो जाना, या ठहर जाना सहज है।

” जिसके आंचल में लिपटी हुई कई हैरान करने वाली बातें छिपी हैं , जिसके आंचल में निर्जन हैं, पहाड़ हैं, नदियां हैं, समुद्र हैं , सूक्ष्म से विराट तक, सब कुछ जिसमें समाहित है। ऐसी विराट प्रकृति के एक बीज के रहस्य को जान लेना भी पूरे जीवन का समर्पण मांगता है.. तो फिर सब समेट लेने का विचार आता ही कहां से है..!”

शिविका🌿

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