सुनो अंतर्मन

सुनो अंतर्मन

सुनो अंतर्मन! तुम व्यूहरचना को क्यूँ नहीं रोकते?कितने ही संवेगो का प्रलाप है तुम्हारे भीतरक्या कुछ नहीं पिरोया जाता हर क्षण तुम मेंतुम कैसे इस ऊहापोह…