दीवारों पर उंगलियों से गढ़ी रचनाएं भी पूरी दिखती हैं उस रचियता के मस्तिष्क में… लेकिन उनकी छवि को सहलाने वाले के मन में बिंब बनना आवश्यक है, वो रचियता के मन को जानना चाहता है पर कभी नहीं जान पायेगा…
जान पाएगा क्या..?
गहराई में भटकने की आज़ादी थी, एकांत था, एक तिनके का गिरना भी तीव्र ध्वनि को जन्म देता था। सबसे मुख्य कारण जो रहा, वो यह था कि अधिकांश दुनिया छिछलेपन को जीवन समझ रही थी। इसीलिए गहराई में भीड़ अधिक हो ही न सकी।
“तैरते रहने के भ्रम में बहुत से लोग जीवन में डूब गए और डूबने की गहरी इच्छा को गले लगाए बहुत से लोग जीवन पार कर गए…”
शिविका 🌿